शोभा दशरथ भवन की

महंत श्री देवेंद्रप्रसादाचार्य जी महाराज

शोभा दशरथ भवन की महिमा अपरम्पार।
जो जन आवे शरण में होवे भव से पार।।
अयोध्या मथुरा माया काशी काँची ह्यवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता: मोक्षदायिका।।

पुराणों में सात मोक्षदायिनी पुरियों का वर्णन है. जिसमें से अयोध्या जी का स्थान सर्वप्रथम है. मोक्षदायिनी पुरी का अर्थ है जिस स्थान पर पुण्य नदी विद्यमान हो जिसमें भगवान का जन्म हुआ हो या भगवान का धाम हो और साथ ही जिसका पौराणिक महत्त्व हो और जिस स्थान पर जप-तप-दान महत्त्व तथा वेद पुराण जिसकी पुष्टि करते हों, ऐसे स्थान को मोक्षदायिनी स्थान या पूरी कहा जाता है. जिसमें सर्वप्रथम श्री अयोध्या जी, द्वितीय मथुरा नगरी, तृतीय हरिद्वार, चतुर्थ है काशी, पँचम है काँची पुरम (दक्षिण), षष्ठ है अवंतिका (उज्जैन), सप्तम है द्वारिकापुरी।

श्री अयोध्यापुरी में चक्रवर्ती महाराज श्री दशरथ जी के राजमहल का विशेष महत्व है। यद्यपि इस भूमि पर त्रेता युग से लेकर अब तक न जाने कितने बार भवन बने होंगे और भवन नष्ट भी हुए होंगे परंतु वर्तमान में जो दशरथ जी का राज महल है ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में इसी जगह दशरथ जी का राजमहल था। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो राजा का स्थान नगर में सबसे मध्य में एवं सबसे ऊंचे स्थान पर होता है। आज भी आप श्री दशरथ जी के राजमहल का दर्शन करेंगे तो ऐसा लगेगा कि दशरथ जी का राज महल सबसे ऊंचे स्थान पर है और अयोध्या के मध्य में स्थित है दशरथ जी के राजमहल के एक तरफ श्री रामजन्मभूमि है, और दूसरी तरफ कनक भवन है और ठीक सामने श्री हनुमानगढ़ी है।

दक्षिणे लक्ष्मणों यस्य यामे च जनकात्मजा।
पुरतोमरुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम।।

इस श्लोक की दृष्टि से देखा जाए जाए तो दशरथ जी के राज महल के ठीक सामने श्री हनुमान जी महाराज विराजमान होकर यह बताते है कि राज महल में भगवान नित्य निवास करते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अयोध्या जी के संत महापुरुषों ने श्री दशरथ जी के राज महल को श्री अयोध्या जी का हृदय मन है। सारे संसार के लोग श्री राम जी को प्रमाण करते हैं।

श्रीराम: शरणं समस्तजगतां रामं बिना का गति:।

ऐसा समझ कर सब लोग राम जी को प्रमाण करते हैं परंतु यह वह स्थल है जहां राम जी अपने माता-पिता को प्रमाण करते हैं।

प्रातः काल उठिकै रघुनाथा। मातु पितु गुरु नावहिं माथा।।

श्री दशरथ जी के राज महल से अतिशयी प्रेम होने के कारण ही श्री सीताराम जी ने आद्य बिंदुगद्यचार्य श्री स्वामी राम प्रसाद आचार्य जी महाराज को इसी स्थल पर साधना थाली बना करके साधना करने का आदेश दिया। जिस प्रकार से श्री दशरथ जी महाराज भगवान श्री राम की बाल लीला का सदैव दर्शन करते रहते थे उसी प्रकार श्री राम प्रसाद आचार्य जी भी श्री राम जी के मधुर रूप के अनुरागी थे।

बंदउ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।।

इस बात से इसकी पुष्टि होती है की यथार्थ में यह श्री दशरथ जी का राज महल है क्योंकि त्रेता युग में चक्रवर्ती महाराज दशरथ जी जिस मकोड़ा धाम में पुत्र कामेष्टि यज्ञ करने के लिए गए थे उसे स्थल पर आज भी दशरथ जी के राज महल की एक शाखा श्री राम जानकी मंदिर एवं यज्ञशाला स्थित है।

श्रृंगी रिषिहिं बसिष्ठ बुलावा। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।

मकोड़ा धाम अयोध्या जी से 25 की० मी० दूरी पर बस्ती जनपद तहसील हराया स्थान परसरामपुर में मनोरमा गंगा के पावन तट पर स्थित है।

नदी ग्राम ( भारतकुंड ) पर भी दशरथ जी के राजमहल की शाखा का एक मंदिर श्री राम जानकी मंदिर के नाम से स्थित है जो यह दर्शाता है कि दशरथ जी के राजमहल से श्री भरत लाल जी श्री राम जी के वियोग में इसी आश्रम में रहकर 14 वर्षों तक तपस्या करते हुए भगवान श्री राम के अयोध्या आने की प्रतीक्षा करते रहे।

नंदीगांव करि परन कुटीरा। कीन्ह निवास धरम धुर धीरा।।

श्री राम जानकी मंदिर नंदीग्राम का वट वृक्ष प्राचीन है जिसका दर्शन करने से आत्म शांति मिलती है।

आज भी नंदीग्राम वट वृक्ष की मान्यता है कि चित्रकूट में अत्री जी के आश्रम पर भारत को में सभी तीर्थ का जल रख दिया गया था चित्रकूट के इस रूप से जल लाकर भारत लाल जी ने वह जल इस ग्रुप में डाल दिया जिस नदी ग्राम के भारत को काजल भी समस्त तीर्थो के जल के समान ही पवन हो गया। इस स्कोप में 27 तीर्थ का जल बिग मैन है जिसका श्री भरत लाल की तपस्या के समय सेवन किया करते थे। नंदीग्राम पर स्थित यह श्री राम जानकी मंदिर यह संदेश देता है कि वर्तमान श्री दशरथ जी का राज महल त्रेता युगीन है।

आप सबको विदित ही होगा की बड़ी देवकली मंदिर में विराजमान माता भगवती जी भगवान श्री राम की कुलदेवी है एवं अयोध्या जी में विराजमान छोटी देवकाली माता का मंदिर मां सीता जी की के द्वारा पूजित देवी है जो श्री सीता जी के साथ ही श्री जनकपुर धाम से आई थी।

ऐसा हमने सुना है कि रुद्रमाल ग्रंथ में इसका वर्णन आया है कि जब श्री सीता जी का विवाह राम जी के साथ हो गया और अयोध्या जी आते समय जब सीता माता अपनी कुलदेवी गिरिजा माता से विदा मांगने गई उसे समय श्री पार्वती जी जो गिरिजा माता के रूप में विराजमान थी सीता जी से बोली - “मुझे भी अपने साथ ले चलो! तुमसे मेरा इतना प्रेम हो गया है कि तुम्हारे बिना जनकपुर में मेरा रहना असंभव है।” माता पार्वती जी के आग्रह को श्री सीता जी ने स्वीकार कर लिया और उन्हें अपने साथ अयोध्या जी ले आई छोटी देवकाली मंदिर भी, श्री दशरथ राज महल का ही एक मंदिर है वह शाखा है। आज भी लोक देवकली मंदिर में माता का दर्शन करते हैं उनके मनोरथ पूर्ण होते हैं।

देवि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुरनर मुनि सब होंहि सुखारे।।

श्री दशरथ जी का राजमहल वह स्थल है जहां का दर्शन करके बड़े-बड़े महात्मा ऋषि मुनि संकडिक नारद जी आदि अपने वैराग्य को भूलकर गृहस्थ धर्म को बार-बार साधुवाद देते थे कि वह गृहस्थ धन्य है जिसको श्री राम जी जैसा सुपुत्र प्राप्त हुआ, वैसे श्री दशरथ जी राजमहल जिनको श्री राम जी के पिता होने का गौरव प्राप्त है उनके बारे में क्या वर्णन कर सकता हूं।

बरनि न जाइ रुचिर अंगनाई। जहँ खेलहीं नित चारिहु भाई।।

आज भी भगवान की इस भूमि पर नित्य लीला होती रहती है जिन महात्माओं को दिव्या दृष्टि प्राप्त है वह महापुरुष उसे लीला का दर्शन कर पाते हैं बाकी लोग तो अनुभव ही कर सकते हैं।

दशरथ गुन गन बरनि न जाइ। अधिक कहा तेहि सम जग नाहीं।।

वर्तमान श्री दशरथ जी का राजमहल अनेक नाम से जाना जाता है। जो भक्तजन दूसरे प्रदेशों से अथवा विदेश से आते हैं वे लोग श्री चक्रवर्ती महाराज दशरथ जी के राजमहल के नाम से जानते हैं।

शोभा दशरथ भवन कई, को कबि बरनै पार।
जहाँ सकल सुर सीसमानि, राम लीन्ह अवतार।।

अयोध्या जी के पूज्य संत महंत प्राय स्थान को बड़ी जगह के नाम से जानते हैं। शायद बड़ी जगह इसीलिए कहते हैं कि यह वह जगह है जिस जगह पर जगननियंता जगधार श्री राम जी बाल रूप में विराजमान हैं।

बाल विनोद करत रघुराई। विचरत अजिर जननि सुख दाई।।

अभिलेखों में ज्यादातर यह जगह बड़ा स्थान के नाम से प्रसिद्ध है एवं जो यहां के विशेष गढ़ है वह लोग इस स्थान को बाबा श्री राम प्रसाद जी का बड़ा अखाड़ा के नाम से जानते हैं। संभवत अखाड़ा नाम इसलिए दिया गया होगा क्योंकि पहले जहां संत महात्मा रहते थे उसे स्थान को अखाड़ा कहा जाता था। एक नाम इसका वृहद स्थान भी है एवं राम दुर्गा के नाम से भी इस स्थल को जाना जाता है। जैसे भगवान श्री राम के अनंत नाम व अनंत चरित्र है। हम अपने को परम सौभाग्यशाली समझते हैं कि ऐसे महात्मा पंडित श्री दशरथ जी के राजमहल में रहने का सौभाग्य सीताराम जी कृपा से प्राप्त हुआ।

जय श्री सीताराम!

संपर्क करें दान करें