श्री रामानन्द संप्रदाय की अपूर्व गद्दी श्री दशरथ महल, बड़ा स्थान

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य

सप्तपुरियों में श्री अयोध्यापुरी प्रधान है या यूँ कहें एकमात्र वैदिक पुरी श्री अयोध्या है, जिसका वर्णन हमें वेदों में प्राप्त होता है। ऐसे पावन धाम को अनादिकाल से अनेक संतों, महापुरुषों, अवधूतों, रमतेरामों ने अपनी तपस्थली बनाई। इसमें अग्रगण्य थें स्वामी श्रीरामप्रसादाचार्य जी महाराज, जिनके द्वारा श्रीअवध में लगभग तीन शताब्दी पूर्व दशरथ महल बड़ा स्थान की स्थापना हुई। स्वामी रामप्रदाचार्य जी युगद्रष्टा महापुरुष थें इन्ही के परंपरा में नवम बिन्दुगद्याचार्य स्वामी श्री राममनोहरप्रसादाचार्य जी हुए जो संत सेवी और गौ ब्राह्मण सेवी थें जिनमें धर्म और राजनीती का अद्भुत समन्वय था। तत्कालीन ब्रिटिश शासक लार्ड का भारत में आगमन हुआ, तब राजधर्म का निर्वाह करते हुए श्रीमहाराज जी ने लार्ड का अभिनन्दन समारोह सभी के सहयोग से संपन्न किया। उक्त समारोह संपन्न होने के बाद जो धन बचा उससे अयोध्या के पौराणिक स्थलों को संरक्षित करने की योजना स्वामी जी ने बनाई। अंग्रेज अफसर एडवर्ड की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करके श्री अवध के कुंडों, सरोवरों, स्थलों को संरक्षित करके वहां शिलापट्ट लगवाया जो आज भी अनेकों स्थलों पर देखा जा सकता है। बड़े दुःख के साथ कहना पद रहा है की जो काम स्वामी जी ने गुलाम भारत में किया था आज हम स्वतन्त्र भारत में नहीं कर प् रहे हैं। आज अयोध्या के पौराणिक महत्व के कुण्ड, सरोवर, स्थल आदि अतिक्रमण के शिकार हैं, किन्तु हम सब मौन हैं। स्वामी जी की इस दूरदर्शिता का परिणाम है कि आज कुछ कुंडों का अस्तित्व बचा हुआ है। संत का कार्य पूजा भजन पाठ के साथ साथ समाज की इन गतिविधियों की और प्रेरित करना भी है जो बड़ी जगह के वर्तमान एवं पूर्वाचार्यों के कार्यों से दृष्टिगोचर होता है।

संत की जो व्यापक दृष्टि है वह अपने कल्याण के साथ साथ समाज के समस्त प्राणियों को भी भवसागर पार करा देती है। यही सच्चे संतत्व का बोध है। उनके दर्शन से समस्त भवरोग दूर हो जाएँ और उनके जीवन में भक्ति का मंगलाचरण हो जाये इन्ही विशेषताओं के कारण ही इसका नाम बड़ी जगह है।

यहाँ समस्त भक्तों को आवास की सुविधा प्रदान की जाती है। आज भी यहाँ संत परंपरा के वर्तमान महंतजी पूरी तत्परता और निष्ठा के साथ अपनी परम्पराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। रामानंद संप्रदाय को गति प्रदान करने का कार्य भी दशरथ महल ने किया है। महाराज दशरथ जी ने त्रिभुवन के स्वामी को पुत्र बनाकर समस्त भक्तों को सुख प्रदान किया। आज उस स्थान की बड़ी महिमा है। आजभी स्वामी देवेंद्र प्रसादाचार्य जी द्वारा समस्त उत्सव, भोग राम भगवन राम के प्रति प्रेम का वैभव अपने उत्कर्ष पर रहता है। आज अयोध्या जी के समस्त परम्पराओं को एक दृष्टि में बड़ी जगह में देखा जा सकता है।

दशरथ महल की संप्रदाय को देन :-

किसी भी आचार्य गद्दी अथवा आचार्य पीठ का आकलन वहां लगे ईंट पत्थरों से नहीं बल्कि वहां पर संचालित होने वाले सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रिय चेतना से संचालित गतिविधियों से होता है। उक्त आचार्य पीठ ने संप्रदाय को ऐसे दो महापुरुषों को प्रदान किया जिसमे श्रीरघुवरप्रसादाचार्य "वेदांत केशरी" और पंडितराज सारस्वत सार्वभौम सर्वतंत्र स्वतन्त्र "जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री भगवदाचार्य महाराज" जिन्होनें श्री रामानंद संप्रदाय को स्वतन्त्र किया तथा अपने ग्रंथों द्वारा अनादि वैदिक श्री रामानन्द संप्रदाय को बौद्धिक आधार प्रदान किया। इस प्रकार दशरथ महल ने अपने स्थापना काल से ही देश और समाज को अनेक महापुरुष प्रदान किए।

इसी श्रृंखला में दशरथ महल के वर्तमान श्री महंत बिन्दुगद्याचार्य स्वामी श्री देवेंद्रप्रसादाचार्य जी महाराज हैं। आपकी साधुता, सरलता, विनम्रता अनुकरणीय है। आप संप्रदाय को साहित्य संवर्धन, साधुसेवा, गौसेवा, संस्कृत भाषा आदि के लिए सदा प्रतिबद्ध रहते हैं। आचार्य श्री द्वारा मात्र दशरथ महल ही नहीं अपितु हम सम्पूर्ण अयोध्यावासी गौरवान्वित हैं।

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