जो आनन्द सिन्धु सुख रासी

जगद्गुरु स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य

सर्वस्यास्याप्रपञ्च दृष्यजगतो यो जन्मदाता प्रभु:।
योगारद्यैर्बहुभी: सुलेशमपि यं द्रष्टुं न शक्ता जनाः।।
सोSयं येन सुललितोंगSकासुलभो वाल्सल्याभावे रतः।
स श्रीमानतिभाज्ञवान दशरथो बन्द्यो नृणां सर्वशः।।

जो भगवान इस संपूर्ण जगत के जन्मदाता है। जिनके दर्शन जोगियो को भी बड़े परिश्रम के बदलेश मात्रा भी नहीं होता है। उसे पर ब्रह्म परमात्मा को जिसने गोद में बिठाकर लाड प्यार किया वह अत्यंत भाग्यशाली महाराज दशरथ सबके ही आती बंदिनी आदरणीय है।

श्रीमानमोघ महिमा प्रथितः पृथिव्याम।
नारायणं प्रियशिषु लालयं योSत्र दृष्टः।।
सोSयं नृपो दशरथो निजहर्म्यपृष्ठे।
दृष्टिं सदा शुभतरं कृपया तनोतु।।

जो महा महिमा मंदिर महाराज दशरथ भगवान नारायण को भी लाड प्यार करते देखे जाते हैं वह महाराज अपने आश्रित महल में रहने वाले लोगों पर भी दया बनाए रखें।

मानव जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धियां में सृष्टि के मूल आनंद के आगाज सागर पर परात्पर ब्रह्मा भगवान की प्राप्ति हो जाना ही सर्वाधिक उपलब्धि माना जाता है। अनंत कोटी ब्रह्मांड के अधिपति के ईश्वर की कोई सीमा संभव नहीं उनके समान होने की कल्पना करना भी एक दससाहस ही है। जिस महासागर की एक बूंद सारे विश्व में आनंद छाया हुआ है उसे एक बूंद के लिए मंत्र को पाने के लिए ही सारा विश्व भटक रहा है वही आनंद सागर आती भाग्यशत महाराजा दशरथ को प्राप्त हुआ था।

जो आनंद सिंधु सुख रासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।

वह भी उनका अनेक जन्मों की साधना, त्याग, तपस्या और पूर्ण हार्दिक निष्ठा भक्ति भाव आदि की अकल्पनीय पराकाष्ठा का ही परिणाम था। पूर्व जन्म में वह संपूर्ण मानव जगत के शासन महाराजाधिराज का वैभव त्याग कर अपनी महारानी के साथ थी वनवासी जीवन व्यतीत करते हुए जंगली फल फूल खाकर और बाद में पूर्ण निराहार रहकर उसे परम तत्व साक्षात्कार करने की कामना में लेने थे, तभी उसकी साधना के फल स्वरुप भगवान ने आकाशवाणी द्वारा वरदान दिया था, जिसे सुनकर और भी आतुर होकर उसे वाले के करता का साक्षात्कार करना चाहते थे तब उन्होंने अधीर होकर प्रार्थना किया था – प्रभु ! मैं आप जैसा पुत्र चाहता हूं और इसी के अनुसार प्रभु ने उन्हें अवध नरेश दशरथ के रूप में उसे वरदान को पूरा किया। अयोध्या नगरी ही महाराज की राजधानी थी। वह त्रेता युग की घटनाएं आज भी यहां किसी न किसी रूप में जीवित है।

आज का विकमन दशरथ महल उसी की स्मृति बनाए रखने का बड़ा ही सुंदर साधन है। आज के इस भवन के स्मृति में अद्भुत साधना संपन्न, सिद्ध संतों का भी योगदान है वह इस भवन की महत्व को और भी पोस्ट बना देता है। संत शिरोमणि श्री राम प्रसाद आचार्य जी महाराज को श्री सीता जी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर उनको अपना प्रिया पार्षद बना लिया यह चर्चा आज भी संत समाज में प्रसिद्ध है। श्री राम प्रसाद आचार्य जी महाराज धनुर्धारी भगवान के परम सेवक और पार्षद प्रसिद्ध है। अयोध्या के राजवंश का भी स्थान से विशेष संबंध रहा है।

आज भी यह स्थान संत सेवा में अग्रणी है। संतो के अग्रणी महंत “बिन्दुगद्याचार्य” श्री देवेंद्र प्रसाद आचार्य जी महाराज सभी महात्माओं के श्रद्धा भजन एवं पूजनीय है। भगवान उनको चिड़िया यू प्रधान कर अयोध्या के गौरव की रक्षा करें। यही प्रार्थना है।

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